[ऋषि - मेधातिथि काण्व। देवता-(प्रतिदेवता ऋतु सहित) १-५ इन्द्रदेव, २ मरुद्गण,३ त्वष्टा, ४,१२ अग्नि,६ मित्रावरुण, ७,१० द्रविणोदा,११ अश्विनीकुमार। छन्द-गायत्री।] १४७.इन्द्र सोमं पिब ऋतुना त्वा विशन्त्विन्दवः । मत्सरासस्तदोकसः॥१॥ हे इन्द्रदेव! ऋतुओ के अनुकूल सोमरस का पान करें, ये सोमरस आपके शरीर मे प्रविष्ट हो; क्योंकि आपकी तृप्ति का आश्रयभूत साधन यही सोम है ॥१॥ १४८.मरुतः पिबत ऋतुना पोत्राद्यज्ञं पुनीतन । यूयं हि ष्ठा सुदानवः॥२॥ दानियो मे श्रेष्ठ हे मरुतो! आप पोता नामक ऋत्विज् के पात्र से ऋतु के अनुकूल सोमरस का पान करें एवं हमारे इस यज्ञ को पवित्रता प्रदान करें ॥२॥ १४९.अभि यज्ञं गृणीहि नो ग्नावो नेष्टः पिब ऋतुना । त्वं हि रत्नधा असि॥३॥ हे त्वष्टादेव! आप पत्नि सहित हमारे यज्ञ की प्रशंसा करे, ऋतु के अनुकूल सोमरस का पान करें! आप निश्चय ही रत्नो को देनेवाले है॥३॥ १५०.अग्ने देवाँ इहा वह सादया योनिषु त्रिषु । परि भूष पिब ऋतुना॥४॥ हे अग्निदेव! आप देवो को यहाँ बुलाकर उन्हे यज्ञ के तीनो सवनो (प्रातः, माध्यन्दिन एवं सांय) मे आसीन करें। उन्हे विभूषित करके ऋतु के अनुकूल सोम का प...