- Get link
- X
- Other Apps
[ऋषि-मेधातिथी काण्व। देवता- १-३ ब्रह्मणस्पति, ४ इन्द्र,ब्रह्मणस्पति,सोम ५-ब्रह्मणस्पति,दक्षिणा, ६-८ सदसस्पति,९,नराशंस। छन्द -गायत्री] सोमानं स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते । कक्षीवन्तं य औशिजः ॥१॥ हे सम्पूर्ण ज्ञान के अधिपति ब्रह्मणस्पति देव! सोम का सेवन करने वाले यजमान को आप उशिज् के पुत्र कक्षीवान की तरह श्रेष्ठ प्रकाश से युक्त करें॥१॥ यो रेवान्यो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः । स नः सिषक्तु यस्तुरः ॥२॥ ऐश्वर्यवान, रोगो का नाश करने वाले,धन प्रदाता और् पुष्टिवर्धक तथा जो शीघ्रफलदायक है, वे ब्रह्मणस्पति देव हम पर कृपा करें॥२॥ मा नः शंसो अररुषो धूर्तिः प्रणङ्मर्त्यस्य । रक्षा णो ब्रह्मणस्पते ॥३॥ हे ब्रह्मणस्पति देव! यज्ञ न करनेवाले तथा अनिष्ट चिन्तन करनेवाले दुष्ट शत्रु का हिंसक, दुष्ट प्रभाव हम पर न पड़े। आप हमारी रक्षा करें॥३॥ स घा वीरो न रिष्यति यमिन्द्रो ब्रह्मणस्पतिः । सोमो हिनोति मर्त्यम् ॥४॥ जिस मनुष्य को इन्द्रदेव,ब्रह्मणस्पतिदेव और सोमदेव प्रेरित करते है, वह वीर कभी नष्ट नही होता॥४॥ [इन्द्र से संगठन की, ब्रह्मणस्पतिदेव से श्रेष्ठ मार्गदर्शन की एव सोम से प...